छत्तीसगढ़ की पारंपरिक पर्व छेरछेरा ,बड़ी हर्षोल्लास से मनाया गया

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पत्रकार – उरेन्द्र साहू गरियाबन्द

हर्षोल्लास के साथ छेरछेर पारम्परिक पर्व मनाया गया मुड़ागांव कोरासी

कोपरा | पौष पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला छेरछेरा महापर्व प्रदेश भर में पारंपरिक तरीके से मनाया गया। यह पर्व खासकर ग्रामीण अंचलों में नई फसल के खलिहान से घर आ जाने के बाद बड़े उत्साह से मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आज के दिन जो भी अनाज दान करता है, उसे सात जन्मों के बराबर पुण्य का लाभ मिलता है। इस पर्व में अन्न दान की परंपरा का निर्वहन किया जाता है। यह उत्सव कृषि प्रधान संस्कृति में दानशीलता की परंपरा को याद दिलाता है। इस दिन बच्चे हाथ में टोकरी , बोरी , थैला लेकर घरों में घूम-घूमकर छेरछेरा-कोठी के धान ला हेर फेरा बोलकर धान का दाना मांगते हैं। वहीं गांव के युवक डंडा नृत्य कर और बुजुर्ग लोग कीर्तन गाकर धान मांगते नजर आते हैं। दान देने में कुछ देरी हो जाने पर बच्चे “अरन-बरन कोदो दरन , जब्भे देबे तब्भे टरन ” कहते दिखे। इस दिन जो भी जातक बच्चों को अन्न दान करते हैं , वे मृत्युलोक के सारे बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इस पर्व में अन्न दान की परंपरा का निर्वहन किया जाता है। इस त्यौहार के एक सप्ताह पहले युवा वर्ग आसपास के गांव में भी डंडा नृत्य करने जाते हैं जबकि त्यौहार के दिन सभी लोग अपने ही गांव में मांगते हैं। छत्तीसगढ़ का लोकपर्व छेरछेरा दुनियां का एकमात्र ऐसा पर्व है , यहां अमीर-गरीब सभी दान मांगने और दान देने का कार्य करते हैं। इस दिन सभी घरों में नया चांवल का चीला , चौसेला , फरा और बड़ा , भजिया सहित कई प्रकार के व्यंजन बनाया जाता है।
छेरछेरा का महापर्व
सुप्रीत दास लोकेश ठाकुर पन्नालाल ठाकुर गिरीश राज ठाकुर विनय ठाकुर,,,, रूद्र कुमार नेताम छेरछेरा धूमधाम से मनाया गया।

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