तथाकथित पत्रकारों के चलते सच्चे पत्रकारों की हो रही छवि खराब एक नजरिए से देखे जा रहे सभी पत्रकार जरूरत है बदलाव की- राजू दीवान
सच्ची पत्रकारिता एक सेवा मगर कुछ तथाकथित पत्रकार पत्रकारिता के आड़ पर कर रहे उगाही डरा धमका कर अपने पावर का दोष दिखाकर लोगों पर जबरन देते हैं दबाव पत्रकारिता जैसे स्वच्छ समाज सेवा के प्रोफेशन को कर रहे बदनाम सुबह से ही निकलते हैं उगाही को पत्रकारिता को कर रहे बदनाम लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के नाम से जाने जाने वाला पत्रकारिता आज जगह-जगह बदनाम हो रहा जहां पोर्टल वेब के माध्यम से जगह-जगह आईडी और पत्रकार खड़े किए जा रहे हैं जिसकी वजह से आज पत्रकारिता अपना अस्तित्व खो रहा जहां इस पत्रकारिता के पेशे को अब लोग तवज्जो नहीं दे रहे हैं जहां पर लोगों में एक अजीब सी छवि छाई हुई है अगर पत्रकार कहीं पहुंच रहा है खबरें कलेक्ट करने खबरें बनाने तो उनसे अब लोग भयभीत होने लगे हैं कहीं इस खबर के लिए उनसे उगाही तो नहीं की जाएगी उन्हें जबरन पैसे तो नहीं मांगी जाएंगे आज ग्राम पंचायत किसानों तक सरपंच इस बात को लेकर परेशान है कि कहीं उनके पास कोई पत्रकार तो ना आ जाए जो उन्हें जबरन परेशान करेंगे क्योंकि इन कथा कथित पत्रकारों के डिमांड अजीब होते हैं वह जबरदस्ती इन प्रतिनिधियों से उगाही करने को लालायित रहते हैं उगाही नहीं होने की स्थिति में उन पर आरटीआई लगाकर उन्हें जवाब मांगा जाता है जिसे लेकर परेशान तो वह रहते हैं उन्हें लगता है जवाब देने से बेहतर है कि इन्हें कुछ पैसे दे दिए जाए जाने अनजाने यह सरपंच उन लोगों का हौसला बढ़ा रहे जो उगाही के लिए ही पत्रकार बने हुए हैं आज सच्ची पत्रकारिता भी उन्हीं नजरिए से देखी जाती है इस पर अंकुश लगाना अति आवश्यक है मगर सरकार भी लाचार नजर आती है जहां पर कौन सच्ची पत्रकारिता कर रहा और कौन उगाही के लिए पत्रकार बना इस पर सरकारी तंत्र भी विफल नजर आ रहा आज पत्रकारिता बदनाम है और हर पत्रकार को एक जैसी नजरों से आप लोग देखने लगे हैं जिसका समाज पर भी असर पड़ रहा अब जरूरत है तो इस तथाकथित पत्रकारों पर अंकुश लगाने की ताकि समाज को एक बेहतर दशा दिशा दी जा सके